बीते दिनों कलेक्टर के निर्देश पर निगम कमिश्नर ने चिकित्सा संस्थानों, शापिंग मॉल, सिनेमाघरों, होटल लाज रेस्टोरेंट्स भवनों की सुरक्षा जांच के लिए आडिट टीम बना दी है, ख़बर है कि इस टीम ने अपना काम भी शुरू कर दिया है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि ऐसे तमाम संस्थानों में से तक़रीबन नब्बे फ़ीसदी तय सुरक्षा मानकों और स्थापना के प्रावधानों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है, मगर काग़ज़ों में तो सारा काला पीला ओके ही दिखाई देता है, क्योंकि ऐसे तमाम संस्थानों के लिए अनुज्ञा पेपर संबधित सरकारी अथारिटी द्वारा भौतिक सत्यापन की बजय चेंबर में बैठकर जारी किये जाते हैं।
बहरहाल अब जब सुरक्षा आडिट को लेकर थोड़ी ज़िम्मेदारी दिखाई जा रही है, तो आडिट टीम को इस बात की जांच ज़रूर करनी चाहिए कि किस संस्थान में अनुमति से ज़्यादा भूखंड में निर्माण हुआ है, कितने फ़्लोर की अनुमति है और कितने में निर्माण हुआ है, किन किन संस्थानों में बेसमेंट है और बेसमेंट का इस्तेमाल पार्किंग, रेस्टारेंट, किचन के लिए किया जा रहा है, किसी भवन के बेसमेंट में रसोई गैस सिलेंडर्स का भंडारण तो नहीं है या बेसमेंट में डीजी पावर जनरेटर सेट तो नहीं लगाया गया है। निगम की सुरक्षा आडिट टीम को उन तमाम प्ले स्कूल की भी जांच करनी चाहिए जहां छोटे छोटे बच्चों को अव्यवस्थाओं के बीच रखा जाता है।
बीते गुरूवार को सुरक्षा आडिट टीम ने अंस होटल का दौरा किया था, इसी अंस होटल में बीते दो सालों के दौरान हुए निर्माण कार्यों की वजह से काफी विस्तार भी हुआ है, सुरक्षा आडिट के साथ ही साथ निर्माण की अनुमति का भी भौतिक सत्यापन होना चाहिए था। नगर निगम की टीम जैसे प्रतिबंधित पालीथिन, साफ़ सफ़ाई और अतिक्रमण को लेकर होने वाली कार्रवाईयों की जानकारी संस्थान के नाम और चालान के साथ करती है, ठीक उसी तरह सुरक्षा आडिट टीम द्वारा की जाने वाली जांच में जिस भी संस्थान के ख़िलाफ़ अनियमितताएं पाई जाती हैं, उनका विस्तृत ब्यौरा हर रोज़ सार्वजनिक करना चाहिए, लोगों को पता तो चले कि आख़िर कौन कौन से बड़े संस्थान तय प्रावधानों को धत्ता बताकर संचालित किये जा रहे हैं।