
बीते 7 अक्टूबर को 2001 बैच के आईपीएस एडीजीपी वाई पूरन कुमार (हरयाणा कैडर) ने चंडीगढ़ स्थित अपने निवास में गोली मारकर आत्महत्या की थी, इस वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को आत्महत्या के लिए मज़बूर करने वालों में पुलिस विभाग के ही कुछ अधिकारियों का नाम सुसाईड नोट के जरिए सामने आया है। दिवंगर आईपीएस वाई पूरन कुमार की पत्नि हरयाणा कैडर में ही आईएएस अधिकारी हैं, जिस वक़्त आत्महत्या की वारदात हुई एस वक़्त वे हरयाणा के मुख्यमंत्री के साथ जापान के आधिकारिक दौरे पर थीं। आईपीएस वाई पूरन कुमार की आत्महत्या के बाद समूचे हरयाणा के प्रशासनिक हलकों में हलचल मची हुई है, इस पूरे मामले की जांच भी हर एंगल से की जा रही है, पर जांच का नतीजा क्या निकलेगा, ये कहा नहीं जा सकता क्योंकि छत्तीसगढ़ ने भी एक युवा आईपीएस की अप्रत्याशित मौत का दंश झेला है। बात तक़रीबन साढ़े तेरह साल पहले 12 मार्च 2012 की है जब बिलासपुर में एसपी रहे आईपीएस राहुल शर्मा ने दोपहर के वक़्त ऑफ़िसर्स मेस में अपनी ही सर्विस रिवॉल्वर से ख़ुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी, ग़ौरतलब है कि राहुल शर्मा रायगढ़ एसपी थे और रायगढ़ से ही बिलासपुर के लिए बतौर एसपी उनका तबादला हुआ था। उन्होंने अपने सुसाईड नोट में इमिडियेट बॉस और हाईकोर्ट के एक एरोगेंट जज को अपनी आत्महत्या का ज़िम्मेदार बताया था। इस मामले में लंबी जांच भी चली, इसी के समानांतर आईपीएस राहुल शर्मा की आत्महत्या से जुड़ी बहुत सी अफ़वाहें भी तैरीं, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया।
हां, इन दोनों या इसी कल्चर की तमाम घटनाओं से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि सरकारी कर्मचारी से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक कई तरह के प्रेशर में अपनी ड्यूटी करते हैं, इनमें से जो प्रेशर को झेल जाते हैं या समझौतेवादी बनकर काम करते हैं वो तो सर्वाईव करते रहते हैं पर जो एक सीमा तक प्रेशर बर्दाश्त करते हैं और समझौते करते हैं वो सीमा रेखा पार होने के बाद आत्महत्या जैसे निर्णय ले बैठते हैं। ये हालात किसी भी मायने में उचित नहीं हैं, क़ायदे से तो सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को अवांछित दबावों से मुक्त रखते हुए हालात सुधारने की कोशिश होनी चाहिए।