
2023 के विधानसभा चुनावों से पहले रायगढ़ जिले में ऐसे भाजपा नेताओं की बाढ़ थी, जिन्होंने अपने अपने मठ के ज़रिए अपनी ही पार्टी में अपनी ताक़त जताने की भरपूर कोशिश की, ज़ाहिर है सबको विधानसभा की टिकट चाहिए थी, मगर पार्टी ने ओपी चौधरी को टिकट देकर सभी मठाधीशों के अरमानों पर पानी फेर दिया। भीतर से ना चाहते हुए भी ओपी चौधरी को जिताने के लिए इन नेताओं को दिखावे का काम करना पड़ा। ओपी चौधरी अपनी सधी हुई रणनीति के कारण भारी मतों से रायगढ़ का चुनाव जीत लिया, भारतीय जनता पार्टी का तत्कालीन नेतृत्व भले ही इस जीत को बड़ी जीत मानता रहा हो लेकिन सच्चाई ये रही कि सारंगढ़ को मिलाकर अविभाजित रायगढ़ जिले से भारतीय जनता पार्टी 4-1 से चुनाव हार गई, जिले में जीत का सेहरा कांग्रेस के माथे पर बंधा। फिर भी रायगढ़ जिले में भाजपा ख़ुश है तो रहे…बढ़िया है।
अब बात भारतीय जनता पार्टी के उन नेताओं की करें जिन्होंने रायगढ़ विधानसभा सीट से ओपी चौधरी को हराने के लिए पार्टी से बाग़ी प्रत्याशी को बैकडोर समर्थन दिया, ये अलग बात है कि तत्कालीन विधायक की प्रायोजित ख़िलाफ़त की लहर और ओपी चौधरी के समर्थन की आंधी में भाजपा के असंतुष्ट खेमे की बैकडोर समर्थन रणनीति औंधे मुंह गिर गई। अब ओपी चौधरी के भारी मतों से जीतने के बाद सबको यही आस बन गई कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री वही बनने जा रहे हैं क्योंकि मोटा भाई ने रायगढ़ आकर ऐलान कर ही दिया था कि ओपी को चुनाव आप जिताओ बड़ा आदमी मैं बनाऊंगा। ख़ैर, भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने छत्तीसगढ़ में आदिवासी कार्ड खेलते हुए साफ़ सुथरी छवि के नेता विष्णुदेव साय को छत्तीसगढ़ की कमान सौंप दी और ओपी चौधरी को वित्त सहित तीन अहम् विभागों की ज़िम्मेदारी दे दी। चुनाव जीतने और दमदार केबिनेट मंत्री बनने के बाद तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों से ओपी समर्थकों की बाढ़ आ गई, भले ही ओपी मुख्यमंत्री नहीं बने पर इन सभी समर्थकों को आज भी लगता है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के बाद सबसे दमदार अगर कोई है तो ओपी ही है।
अब बात करते हैं रायगढ़ भाजपा के उन तमाम बड़े चेहरों की, जिन्होंने विधानसभा का सपना टूटने के बाद निगम मंडल की आस लगाकर रखी थी, मगर जब छत्तीसगढ़ में निगम मंडलों की सूची जारी हुई तो रायगढ़ पूरी तरह ग़ायब दिखा। इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी में संगठन चुनाव के लिए अध्यक्ष बने अरुणधर दीवान, जो पूर्व जिलाध्यक्ष उमेश अग्रवाल मठ के पुजारी रहे हैं, निगम चुनाव में भी महापौर से लेकर पार्षद प्रत्याशी चयन में उमेश अग्रवाल की ख़ूब चली, सभापति और एमआईसी में भी उमेश हावी रहे। अब बचा है एल्डरमैन के नामों का चयन, तो ये तय माना जा रहा है कि चलेगी उमेश की ही। कुल मिलाकर अगर रायगढ़ जिले में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता और संगठन के सामंजस्य के लिहाज़ से चल तो दो की ही रही है…..ओपी और उमेश….बाक़ी सब हां सर, जी सर, हां भैया, जी भैया की भूमिका में ही बचे रह गये हैं। आगे देखते हैं संगठन के विस्तार में कौन कौन सा पुराना मठ उपकृत हो पाता है।
– युवराज सिंह “आज़ाद”, संपादक @khabarbayar