
बीते साल 2024 के फरवरी महीने की 26 तारीख़ को शिलान्यास के बाद से अमृत भारत स्टेशन स्कीम ABSS के तहत् रायगढ़ रेल्वे स्टेशन के उन्नयन का काम जारी है, बीच में कई महीनों तक ठेका कंपनी की लापरवाही से निर्माण कार्य की गति थम सी गई थी, मगर अब तेज़ी देखने को मिल रही है। रायगढ़ रेल्वे स्टेशन के आसपास छोटे बड़े मंदिर और एक मज़ार को मिलाकर कुल चार पूजा-प्रार्थना इबादत स्थल हैं। रेल्वे स्टेशन मेन गेट के ठीक सामने पीरबाबा की तक़रीबन चार दशक से भी ज़्यादा पुरानी मज़ार है, जहां हर साल उर्स का आयोजन ताज़ बाबा मज़ार कमेटी द्वारा किया जाता है। यह इबादतगाह केवल मुस्लिमों के लिए ही नहीं हिंदुओं के लिए भी आस्था का प्रतीक है। ताज़ बाबा की इस मज़ार के अस्तित्व पर अब संकट के बादल छाने लगे हैं। ख़बर है कि बहुत जल्द इस मज़ार को ढहा दिया जायेगा। निर्माण कार्य को गति देने के लिए रेल्वे द्वारा मज़ार हटाने का पत्र भी जारी हो चुका है। मज़ार प्रबंधन कमेटी और रेल्वे अधिकारियों के बीच बीते जून महीने की 10 तारीख को बैठक भी हो चुकी है, इस बैठक में मज़ार कमेटी के सदस्यों ने रेल्वे स्टेशन कायाकल्प सौंदर्यीकरण का समर्थन करते हुए मज़ार के हटाये जाने के ऐवज में व्यवस्थापन के लिहाज़ से थोड़ी जगह की मांग की थी, मगर रेल्वे ने ज़मीन उपलब्ध ना होने की बात कहते हुए मज़ार व्यवस्थापन से अपना पल्ला झाड़ लिया है। अब मज़ार प्रबंधन कमेटी ने रायगढ़ एसडीएम को एक पत्र देकर मज़ार के अस्तित्व को बचाये रखने की कोशिश की है।


ग़ौरतलब है कि रायगढ़ को सर्वधर्म समभाव के लिहाज़ से बहुत मज़बूत किला माना जाता है, यहां का सांप्रदायिक सौहार्द तमाम विषम हालातों के बीच भी पूरी ख़ूबसूरती के निखरता रहा है। कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो इस शहर में ईद, दुर्गा पूजा, दशहरा दीपावली, गुरू परब और क्रिसमस की ख़ुशियां मिलकर मनाने की समृद्ध रवायत आज से नहीं दशकों से चली आ रही है। तो क्या ताज़ बाबा की मज़ार के व्यवस्थापन के लिए एक बार साझा प्रयास नहीं होने चाहिए। कोशिश को मिलकर की ही जा सकती है, होना ना होना तो बाद की बात है। वैसे इस बात में कोई दो राय नहीं कि आम आवागमन में बाधा खड़ा करने वाले सभी स्थायी स्ट्रक्चर्स पर बनते समय ही रोक लगा देनी चाहिए, बाद में इन्हें हटाने में बहुत सी समस्याएं आती ही हैं।