रिज़र्व फ़ारेस्ट की ज़मीन पर अतिक्रमण हो रहा और जंगल विभाग चुप
शहर में वार्ड नंबर 25 का क्षेत्र सरकारी ज़मीन पर धड़ल्ले से किये जा रहे अतिक्रमण के मामलों में सबसे सेंसिटिव बन चुका है। मिशन अस्पताल के पीछे नाला पाटकर अतिक्रमण किया जा चुका है, कौहाकुंडा पहाड़ मंदिर क्षेत्र में रिज़र्व फ़ारेस्ट की ज़मीन अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी है, निजी बिल्डर्स को लाभ पहुंचाने के लिए सरकारी राजस्व और रिज़र्व फ़ारेस्ट की ज़मीन पर कब्ज़ा करवाने के लिए बाक़ायदे लाबिंग की जा रही है। पहाड़ मंदिर से वृद्धाश्रम की तरफ़ जाने वाले मोड़ में भी खुलेआम अतिक्रमण हो रहा है। थोड़ा आगे जाएं तो शराब दुकान के आगे मोड़ से गांधीनगर की तरफ़ जाने वाले कच्चे रास्ते में सीसी सड़क निजी भूस्वामी को सीधे सीधे लाभ पहुंचाने के लिए नगर निगम द्वारा बना दी गई, इस सीसी सड़क के लिए क्षेत्रीय पार्षद द्वारा जो लागत बताई जा रही है, उतने में तो सौ मीटर बनना मुश्किल है, पर तक़रीबन तीन से चार सौ मीटर की अच्छी ख़ासी चौड़ी और मोटी सीसी सड़क इतने कम लागत में कैसे बन गई, ये शोध का विषय बन चुका है, जिस भी ठेकेदार ने इस सड़क को बनाया है, उसी से शहर की बाक़ी सड़कें भी बनवानी चाहिए।
गांधीनगर का खेल इतने में ही नहीं रुका, 15-20 घरों की इस बस्ती में सड़क किनारे जो मकान बने हैं, उन पर दबाव बनाकर तोड़फोड़ की गई, जिससे की सड़क की चौड़ाई में कोई कमी ना आये। आगे प्राकृतिक नाले में अतिक्रमण करके पुल भी बना दिया गया। इस पूरे खेल के नेपथ्य में प्राकृतिक नाले के आगे की तक़रीबन 9 से 10 एकड़ की ज़मीन निजी भू स्वामी की है, जो कि सड़क बनने से पहले कौड़ी की थी, मगर अब करोड़ों की हो चुकी है।
अतरमुड़ा, मेडिकल कॉलेज, पहाड़ मंदिर कौहाकुंडा की तरफ़ कोटवारी ज़मीन पर भी भू-माफियाओं की गिद्ध-नज़र पड़ चुकी है। 2011-12 से रायगढ़ के रियल एस्टेट कारोबार में जो डाउनफ़ाल आया था, अब लगभग डेढ़ साल से ज़बरदस्त उछाल आ गया है, शहर के चारों तरफ़ रेरा पंजीयन के अलावा अवैध तौर पर प्लाटिंग हो रही है। अगर औसत निकालें तो रेरा पंजीयन की तुलना मे अवैध प्लाटिंग वाले प्रोजेक्ट्स की तादाद ज़्यादा है, इस खेल में शहर के वही 15-20 चेहरे शामिल मिलेंगे, जिन्हें इस बात को लेकर रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ता कि सरकार किसकी है। हमारे शहर के चुने हुए जनप्रतिनिधि ऐसे चेहरों को संरक्षण देते हैं और ये अपनी बिसात बिछा लेते हैं, जबकि राजस्व मामलों से जुड़े स्थानीय अधिकारी और निगम तंत्र भी भू-माफियाओं की मदद करता साफ़ दिखाई देता है। अब तो अति हुई जा रही है, इंतज़ार इस बात का है कि भू-माफियाओं के काले कारनामों पर लगाम लगाने कोई जनप्रतिनिधि या अधिकारी आगे आता है या सारा खेल ऐसे ही खुल्लम-खुल्ला चलते रहने वाला है।