
शिक्षा के संस्थानों में सकारात्मक सोच के साथ छात्र संगठन काम करें तो बात ही कुछ और हो, मगर बीते तक़रीबन दो दशकों से छात्र राजनीति आपसी गुटीय संघर्षों में उलझकर बड़ी तेज़ी से विकृत और अराजक होती जा रही है। वो भी एक दौर था जब छात्र राजनीति से जुड़े युवाओं को सत्ताधारी दल से भरपूर सम्मान मिलता था, अपने शहर और जिले से लेकर राजधानी भोपाल तक छात्र राजनीति से जुड़े नेताओं का दबदबा दिखाई देता था, लेकिन आज की स्थिति में हालात बिल्कुल उलट नज़र आ रहे हैं, अब तो सत्ताधारी दल और विपक्ष के छात्र संगठन अपने ही छात्र नेताओं के ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं, जिसका नुकसान साफ़तौर पर छात्रों को ही उठाना पड़ता है।
अब ताज़ा मामला डिग्री कॉलेज का ही उठाकर देखें तो पता चलता है कि छात्र नेताओं के आपसी मनमुटाव का खामियाज़ा उन सैकड़ों छात्र छात्राओं को उठाना पड़ा, जिन्होंने बड़े अरमानों के साथ फ़्रेशर्स पार्टी का आयोजन बीते 15 सितंबर को निगम ऑडिटोरियम में किया था, नगर निगम में शुल्क जमा कराकर ऑडिटोरियम बुक भी कर लिया था, तय समय पर वहां बच्चों की तादाद के हिसाब से खाने पीने और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए सारी व्यवस्थाएं भी हो चुकी थीं, इन व्यवस्थाओं में डिग्री कॉलेज के स्टूडेंट्स के काफ़ी पैसे भी ख़र्च हो गये जो उन्होंने आपसी भागीदारी से इकट्ठे किये थे, मगर अचानक निगम प्रशासन ने ऑडिटोरियम की बुकिंग रद्द कर दी, किसके दबाव में की ये अभी तक स्पष्ट नहीं है। ख़बर तो ये भी है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के मनोज अग्रवाल के आग्रह पर निगम प्रशासन ने ऑडिटोरियम आरक्षण की तय राशि में कंसेशन भी कर दिया था, आयोजन के एक दिन पहले स्टूडेंट्स के आग्रह पर ख़ुद महापौर ने भी ऑडिटोरियम पहुंचकर वहां की व्यवस्थाओं को ठीक कराया था। लेकिन निगम प्रशासन द्वारा कार्यक्रम के दिन ही अचानक आरक्षण रद्द करने की वजह से स्टूडेंट्स काफी निराश हो गये और 15 सितंबर का आयोजन बड़े आर्थिक नुकसान के साथ रद्द करना पड़ा। ये मामला जब सुर्खियों में आया तब प्रशासन की तरफ़ से डिग्री कॉलेज के स्टूडेंट्स के लिए सकारात्मक पहल करते हुए आयोजन के लिए 18 सितंबर की डेट तय की गई, जिसके लिए बाक़ायदा जिला प्रशासन के अधिकारियों और छात्र संगठन के प्रतिनिधियों के बीच सार्थक बैठक भी हुई थी, मगर यहां भी 17 सितंबर को फ़रमान आता है कि डिग्री कॉलेज के स्टूडेंट्स को आयोजन की अनुमति नहीं मिलेगी। अब डिग्री कॉलेज के स्टूडेंट्स दोबारा ख़र्चे का बोझ उठाकर सिंधी समाज के भवन में बड़े भारी मन से अपना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम करने को मज़बूर हैं। इस पूरे घटनाक्रम ने एक बात तो साफ़ कर दी है डिग्री कॉलेज के स्टूडेंट्स के आयोजन को ना होने देने के लिए पर्दे के पीछे राजनैतिक दलों के हस्तक्षेप से कोई ना कोई बड़ा खेल ज़रूर हुआ है, जो कम से कम छात्रहित में तो क़तई नहीं माना जा सकता।



यहां बताना ज़रूरी है कि डिग्री कॉलेज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ABVP और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन NSUI के सामूहिक नेतृत्व में स्टूडेंट्स के लिए फ़्रेशर पार्टी का आयोजन किया गया था, 15 सितंबर को तो सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने वाले स्टूडेंट्स अपनी अपनी प्रस्तुतियों के लिए तैयार होकर भी आये थे मगर कार्यक्रम की अनुमति रद्द होने के कारण उन्हें केवल निराशा ही हाथ लगी थी। इस आयोजन के लिए नगर निगम में ऑडिटोरियम आरक्षण के लिए जो रसीद कटी थी उसमें मनोज अग्रवाल, बलराम गोंड़, कौशल मैत्री और मोहम्मद आदिल ख़ान का नाम है। तक़रीबन तीन साल पहले 20 सितंबर 2022 को डिग्री कॉलेज में प्रवेश की लास्ट लेट को वाईस चांसलर की अनुमति के बाद भी नहीं बढ़ाये जाने को लेकर विवाद हुआ था, तब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मनोज अग्रवाल के नेतृत्व में आंदोलन किया गया था, इस आंदोलन ने एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच गुटीय संघर्ष का रूप अख़्तियार कर लिया था, डिग्री कॉलेज में 20 सितंबर को हुई मारपीट में मनोज अग्रवाल सहित कुछ छात्र नेता चोटिल भी हुए थे। मगर तब से लेकर अब तक डिग्री कॉलेज में दोनों ही छात्र संगठनों के बीच आपसी सूझबूझ से सौहार्द का माहौल बना हुआ है, जिसका प्रमाण नगर निगम के ऑडिटोरियम आरक्षण की रसीद में दिखाई देता है। इन तमाम हालातों के बीच लाख टके का सवाल ये है कि आख़िर वो कौन लोग हैं जिन्हें डिग्री कॉलेज में छात्र संगठनों के बीच भाईचारे का वातावरण बर्दाश्त नहीं हो रहा है और वो नेपथ्य से खेल कर रहे हैं।