महिला बाल विकास विभाग के अधीन संचालित चक्रधर बाल सदन से संबद्ध कामकाजी महिलाओं के वसति गृह हास्टल में रहने वाली 24 वर्षीया युवती के साथ 27-28 अगस्त की दरमियानी रात शराब के नशे में धुत्त युवक द्वारा रास्ता रोककर छेड़छाड़ की घटना को अंजाम दिया गया था, चक्रधर बाल सदन प्रबंधन को घटना के वक़्त रात में ही जानकारी मिल गई थी, सारी घटना सीसीटीवी कैमरे में क़ैद भी हो गई थी, मगर घटना के तीसरे दिन पीड़िता का बयान करवाकर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज़ करवाई गई। कोतवाली में पीड़िता की शिक़ायत पर आरोपी युवक के ख़िलाफ़ धारा 127(1)296 BNS के तहत् मामला दर्ज़ कर विवेचना में लिया गया है।
यहां लाख टके का सवाल यही है कि चक्रधर बाल सदन प्रबंधन को जब घटना के वक़्त ही जानकारी मिल गई थी और पीड़िता के बयान में ये बात भी साफ़ हो चुकी है कि चक्रधर बाल सदन की दीदी ने आरोपी को डांट डपटकर भगा दिया, जबकि होना तो ये चाहिए था कि तत्काल घटना की जानकारी महिला बाल विकास विभाग के मुखिया को दी जाती और उनकी सहमति के साथ रात में ही पुलिस को शिक़ायत दर्ज़ हो जाती। मगर संस्था प्रबंधन ने ऐसा क्यों नहीं किया? इस पर ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए, क्योंकि महिला, बालिकाओं और बच्चों से जुड़ी संवेदनशील संस्थाओं में प्रबंधन द्वारा बरती जाने वाली ऐसी लापरवाहियां आने वाले समय में बड़ी घटनाओं का कारण बनती हैं।
बाल सदन में रख रखाव, मरम्मत या दूसरे कार्यों के नाम पर दाल में नमक या नमक में दाल बराबर ऊंच-नीच को एक बार नज़रअंदाज़ किया जा सकता है, मगर बालिकाओं, युवतियों महिलाओं की सुरक्षा में चूक को नज़रंदाज़ करना किसी एंगल से उचित नहीं है। वो तो ग़नीमत है कि पीड़िता के साथ शराबी युवक अनहोनी के नापाक मंसूबों को अंजाम देने में सफल नहीं हो सका, वरना फिर जलती मोमबत्तियां लेकर शहर की सड़कों पर निकलना पड़ता और तब शायद पछताने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता।
बहरहाल, पुलिस द्वारा चक्रधर बाल सदन परिसर में युवती के साथ हुई छेड़छाड़ की घटना को लेकर जांच में जुट गई है, अंजाम क्या होगा ये तो आने वाला वक़्त ही बतायेगा, पर कलेक्टर महोदय द्वारा महिलाओं की आवासीय संस्थाओं के पंजीयन, वहां रहने वाली महिलाओं युवतियों बालिकाओं की पूरी जानकारी के लिए महिला बाल विकास विभाग को सख़्त हिदायतों के साथ सक्रिय करें। ख़बर है कि पंडरीपानी के आगे कुछ ही दूरी पर एक आश्रम में बालिकाओं को सेवाभाव के लिहाज़ से रखा जाता है, संस्था की नेक-नियति पर संदेह नहीं करना चाहिए, लेकिन इतनी जानकारी तो होनी ही चाहिए कि ऐसी संस्थाओं का महिला बालविकास में पंजीयन है भी या नहीं। हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी बनती है कि हम बालिकाओं, युवतियों, महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को लेकर संजीदा रहें।
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