रायगढ़ निगम कार्यालय के ठीक सामने गार्डन है, जहां बड़े बड़े पेड़ पौधों की वजह से हरियाली बनी रहती थी, इन्हीं पेड़ों में शाम होते ही अनगिनत पक्षियों का आशियाना बन जाता था, वहीं लोगों को कुछ देर सुक़ून से बैठने के लिए ठंडी छांव मिल जाया करती थी। इन्हीं पेड़ पौधों की बदौलत भीषण गर्मी में भी तापमान बाक़ी जगहों की तुलना में नियंत्रित रहता था। मगर बड़े दुःख की बात है कि निगम के गार्डन में पेड़ पौधों की टहनियों की छंटाई के नाम पर बेरहमी से क़त्ल-ए-आम मचा दिया गया है। अगर ये पेड़ पौधे बोल सकते तो अब तक हा-हाकार मच गया होता। गार्डन में पेड़ों की बेतरतीब कटाई से निगम का स्टाफ़ भी बेहद दुःखी है। अलग अलग प्रजाति के सभी बड़े बड़े पेड़ पौधे काटे जाने के बाद जो लकड़ी निकल रही है, कहा जा रहा है कि उसे जलाऊ के तौर पर इस्तेमाल किया जायेगा। इन लकड़ियों का क्या हिसाब क़िताब है, किसी को नहीं पता।
यहां बताना ज़रूरी है कि 2004-05 के दौर में ऐसे ही निगम परिसर गार्डन में पेड़ कटाई का मुद्दा गहराया था, तब पर्यावरण वाहिनी से जुड़े भाजपा के संवेदनशील नेता आलोक सिंह निगम की बैठक के दौरान मुंह में काला कपड़ा लगाकर शामिल हुए और पेड़ कटाई के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी, तब पेड़ कटाई की वजह ये बताई जा रही थी कि सड़क की तरफ़ निगम की दुकानों को पीछे किया जाना है, आलोक सिंह के विरोध के बाद पेड़ कटाई नहीं हो सकी।
अब निगम गार्डन परिसर में बेरहमी से की जा रही पेड़ कटाई के कारण पक्षियों के आशियाने की चिंता लोगों को होने लगी है। बेहतर होगा पेड़ों की टहनियों की छंटाई मानवीय संवेदना के साथ की जाये, क्योंकि दूसरों को जीवन देने वाले बेज़ुबानों के मर्म को संवेदनशीलता के साथ ही महसूस किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो पर्यावरण संरक्षण का राग आलापना बंद कर देना चाहिए।