
नियमितिकरण सहित अपनी दस सूत्रीय जायज़ मांगों को लेकर पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं से जुड़े संविदा एनएचएम कर्मचारी बीते इक्कीस दिनों से हड़ताल पर हैं, इनकी हड़ताल की वजह से प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ चुका है। सरकार का कहना है कि पांच मांगें मान ली गई हैं लेकिन आंदोलनकारी एनएचएम संविदाकर्मियों का कहना है अगर सरकार ने मांगें मान ली हैं तो लिखित में जारी करे। वहीं आंदोलनकारी हर रोज़ अलग अलग तरीक़ों से सरकार के प्रति अपना विरोध प्रदर्शन ज़ाहिर कर रहे हैं। बीते दिनों आंदोलनकारियों ने प्रतीकात्मक तौर पर सर मुंडवा लिये, पूरे प्रदेश में हज़ारों एनएचएम कर्मियों ने सामूहिक इस्तीफ़ा भी दे दिया, इधर सरकार भी आंदोलनकारियों पर दबाव बनाने के लिए सेवा समाप्ति का डंडा चला चुकी है। अभी तो सेम्पल के तौर हर जिले से दो एनएचएम कर्मचारियों की सेवा समाप्ति का आदेश आया है, बावजूद इसके अपनी जायज़ मांगों को लेकर पूरी शिद्दत और एकजुटता से डटे आंदोलनकारी ये साबित करने में सफ़ल हो रहे हैं कि सरकार द्वारा आंदोलन को कमज़ोर करने अपनाये जा रहे तमाम हथकंडों से डरने की बजाय आंदोलन को पैना किया जायेगा।
बीते शनिवार को आंदोलन के बीसवें दिन शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी स्टेडियम के एक हिस्से में टेंट लगाकर आंदोलनरत एनएचएम संविदाकर्मियों ने अपने शरीर से ख़ून निकालकर सरकार को चिट्ठी लिखी है, जिसमें कहा गया है कि सरकार संवेदनहीन की बजाय संवेदनशील बनकर विचार करे और सभी एनएचएम संविदाकर्मियों के नियमितिकरण सहित सभी जायज़ मांगों को पूरा करे। यहां बताना वाज़िब जान पड़ रहा है कि ग़ुज़रे बीस वर्षों से एनएचएम संविदाकर्मियों ने नियमितिकरण सहित अपने हक़ अधिकार की जायज़ मांगों को लेकर संघर्ष करते आ रहे हैं। इस बार के आंदोलन में सभी एनएचएम संविदाकर्मियों की एकजुटता पहले दिन से ही देखी जा रही है, अब तो हालात ये हो गये हैं कि सरकार अपनी हठधर्मिता छोड़ नहीं रही है और आंदोलनकारी हैं कि पीछे हटने का नाम नहीं ले रहे हैं। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच बढ़ती टकराहट का खामियाजा चिकित्सा सुविधा की आस में सरकारी अस्पताल पहुंचने वाला आम आदमी भुगत रहा है। अगर सूबे की भाजपा सरकार मोदी की गारंटी और चुनाव में किये गये वादे पर ईमानदारी से अमल करती है तो एनएचएम संविदाकर्मियों के बेहतर, सुरक्षित भविष्य के लिए निर्णय ले सकती है और ऐसा सरकार को करना चाहिए ।