OP DIWALI 7
VIJAY AGRWAL
SUSHIL MITTAL
SOMAWAR
RADHESHIYAM
PARDKSH NAYAK DIWALI 7
RAKESH MISHRA
RATTHU
VIKAS PUSPAK
AR GURUP DIWALI 8
ARUN GUPTA
CHHABDA SELS
JAYANT DIWALI 7
AG
KIRSHI DIWALI 6
NAVNIT1
KHADHY VIBHAG
MSP
KARAN DIWALI 12 copy
OMI
RAIGARH EIPAT SANGH DIWALI
PAPPU SANJIVNI
PATEL JEWLARS
GAGAN ROD DIWALI 8
HOTAL PUSPAK DIWALI 3
CG GIRH NIRMAN DIWALI
RAMBHAGT
TINY TOES ADD
SHALBH AGRWAL ADD
TINY TOES ADD 2
TINY TOES SCHOOL
R L ADD
BALAJI METRO ADD 14 SAL
RAJPRIYA ADD
SANJIYANI ADD
RUPENDR PATEL
APEX ADD
BALAJI METRO ADD 2
Untitled-1
ANUPAM KEDIYA
SANJIVANI 1
SANJIVANI 2
SANJIVANI 3
SANJIVANI 4
SANJIVANI 5
RAIGARH ARTHO 01
RAIGARH ARTHO 02
RAIGARH ARTHO 03
RAIGARH ARTHO 03
sunground
ANUPAM ADD
GANGA SEWAK ADD 1
3
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अथ श्री चक्रधर समारोह कथा : मंच, माला, माईक और मनी साधना का जरिया बनकर रह गया है चक्रधर समारोह, हर साल राज परिवार की बेजा दखल से समारोह की गरिमा हो रही तार-तार

  • Raigarh
  • September 1, 2025
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रियासतकालीन दौर में रायगढ़ राज के शासक चक्रधर सिंह की जन्मतिथि गणेश चतुर्थी बताई जाती है और गणेश चतुर्थी को उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा भी रियासतकालीन रायगढ़ के दौर में शुरू हुई थी, रियासतें ख़त्म हुईं सरकारी व्यवस्था शुरू तो हुई मगर सभा समारोहों में राजपरिवार का दखल किसी न किसी रूप में सामने आता ही रहा। रायगढ़ में 1984 का वो दौर आया जब चक्रधर ललित कला केंद्र की स्थापना के साथ चक्रधर समारोह गणेश मेला के आयोजन की शुरुआत हुई थी, अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां संगीत अकादमी द्वारा हर साल दो दिन का आयोजन सरकारी स्तर पर किया जाता था, जिसमें आकाशवाणी के उद्घोषक से लेकर कलाकारों का चयन तक उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां संगीत अकादमी के मार्फ़त होता था, मगर दो दिनों के सरकारी आयोजन के बाद बाक़ी आठ दिनों का आयोजन गणेश मेला के नाम पर चक्रधर ललित कला केंद्र के संस्थापक जगदीश मेहर (जो ख़ुद एक सिद्धहस्त वॉयलिन वादक और गायक हैं) और गणेश कछवाहा (संस्कृतिकर्मी) के नेतृत्व में जिला प्रशासन के सहयोग से किया जाने लगा, रायगढ़ की जनता से चक्रधर समारोह के नाम पर प्रशासनिक स्तर पर चंदा उगाही की परंपरा यहीं से शुरू होती है। इस दौर में चक्रधर समारोह का मंच और माईक गणेश कछवाहा के कब्ज़े में होता था, कौन से कार्यक्रम शामिल करने हैं कौन से नहीं, ये चक्रधर ललित कला केंद्र ही तय करती थी। तब के दौर में शहर का एक ऐसा तबका तेज़ी से उभर रहा था जो जगदीश मेहर और गणेश कछवाहा की जगह लेकर चक्रधर समारोह के आयोजन में अपना वर्चस्व जमाना चाहता था। छत्तीसगढ़ अलग होने के बाद पूरा का पूरा चक्रधर समारोह छत्तीसगढ़ सरकार के संस्कृति विभाग और रायगढ़ की जनता के सहयोग से जिला प्रशासन द्वारा आयोजित किया जाने लगा, 2001 के बाद से चक्रधर समारोह के आयोजन में देवेश शर्मा (भजन गायक), तन्मय दासगुप्ता (गिटार वादक एवं जिंदलकर्मी) और अंबिका वर्मा (सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर) की एंट्री होती है और देखते ही देखते समारोह टाऊन हॉल के मंच से निकलकर रामलीला मैदान पहुंच गया, जहां संस्थापक सदस्यों गणेश कछवाहा और जगदीश मेहर का पत्ता काट दिया गया, अब कलाकारों के चयन में देवेश शर्मा और मंच संचालन में सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर अंबिका वर्मा ने अपनी जड़ें जमा लीं, हां रायगढ़ राजपरिवार के नाम पर कुंवर भानु प्रताप सिंह, देवेंद्र प्रताप सिंह, उर्वशी देवी और सेवक नटवर सिंघानिया की हर साल के आयोजन में पैठ बनी रही जो कि अब तक जारी है। तक़रीबन 17 साल पहले चक्रधर समारोह के आयोजन में राजेश डेनियल गुरूजी की एंट्री हो गई, रेणु गोयल को भी जोड़ लिया गया, इन दोनों का जुड़ना अंबिका वर्मा सर को भीतर ही भीतर नागवार ग़ुज़रा क्योंकि मंच संचालन में वो अपना एकाधिकार मानकर चल रहे थे। 2003 के बाद से पूरे आयोजन का सरकारीकरण कर दिया गया, सरकारी बजट के अलावा जिला प्रशासन द्वारा औद्योगिक व्यावसायिक संस्थानों से मोटा फंड भी इकट्ठा होने लगा, यहीं से टेंट लाईट माईक और खानपान व्यवस्था माफ़ियाई अंदाज़ में जुगाड़ बैठाकर संचालित की जाने लगी। चूंकि चक्रधर समारोह में कुश्ती और कबड्डी को भी शामिल किया गया था लिहाज़ा इन आयोजनों में भी कुछ लोगों के ठसने की प्रवृत्ति अब तक बनी हुई है, ऐसे लोग हर साल अपना जुगाड़ बना ही लेते हैं। चक्रधर समारोह में संगीत, नृत्य, लोकगीत संगीत, काव्यपाठ, मुशायरा, क़व्वाली और रंगमंच जैसी कला की सभी विधाओं को शामिल किया गया था, मगर बीते कुछ वर्षों से रंगमंच (नाटकों) को शामिल करने में आयोजन समिति की ना-नुकुर देखने को मिली है। कलाकारों के चयन में राजपरिवार के प्रतिनिधि की हैसियत से देवेंद्र प्रताप सिंह अपनी दखल हमेशा बनाकर रखते हैं, कथक के रायगढ़ घराने से जुड़े सुनील वैष्णव, बासंती वैष्णव और वैष्णव हर साल अलग अलग नामों से अपना कार्यक्रम जुड़वाने में सफल हो ही जाते हैं। इस साल तो बासंती वैष्णव आयोजन समिति के रवैय्ये से इस हद तक नाराज़ दिखाई दे रही थीं कि उन्होंने आयोजन से पहले अपनी प्रेस कांफ्रेंस तक का मन बना लिया था, मगर ख़बर आ रही है कि वो संतुष्ट हो गई हैं।

पता नहीं किसकी सलाह पर इस बार तो चक्रधर समारोह के आयोजन की पहली आम बैठक तक नहीं हुई, जिसमें शहर के कलाकार संस्कृतिकर्मी और समाजसेवियों से आयोजन को बेहतर बनाने के सुझाव लिये जाते थे। इसबार तो देवेंद्र प्रताप सिंह राज्यसभा सदस्य की हैसियत से सारा कंट्रोल अपने हाथों में लिये हैं, देवेंद्र बाबा की बहन उर्वशीदेवी सिंह (कांग्रेसी) और नटवर सिंघानिया (राजपरिवार सेवक) भी आयोजन की व्यवस्थाओं से जुड़ी सभी कमेटी में शामिल हैं, अंदरख़ाने से जो जानकारी निकलकर आई उसमें ये बताया गया कि कलाकारों के चयन में इस बार राजेश डेनियल गुरूजी की ही चकरी चली है।

रायगढ़ में तक़रीबन 15 करोड़ ख़र्च करके सांस्कृतिक भवन बनाया गया है, जो कि आयोजनों के अभाव में खंडहर होता जा रहा है, रखरखाव के नाम पर भी लापरवाहियां देखने को मिलती हैं,क़ायदे से तो चक्रधर समारोह का आयोजन इसी सांस्कृतिक भवन में होना चाहिए, इससे होगा ये कि सांस्कृतिक भवन राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों की प्रस्तुति के हिसाब से “वेल इक्विप्ड” हो सकेगा। मगर हर साल देखने में आता है कि चक्रधर समारोह के आयोजन से पहले टेंट माफ़िया की लॉबिंग रामलीला मैदान के लिए शुरू हो जाती है, इसका कारण ये है कि रामलीला मैदान में आयोजन के लिए टेंट साऊंड लाईट और खान-पान का बजट करोड़ों में पहुंच जाता है। जबकि रामलीला मैदान के सुधार कार्य के लिए डीएमएफ से तक़रीबन 35 लाख की राशि कांग्रेस कार्यकाल में ख़र्च की जा चुकी है, चुनाव जीतकर सरकार में आने के बाद स्थानीय विधायक और केबिनेट मंत्री ओपी चौधरी ने भी रामलीला मैदान में खेल सुविधाओं के विस्तार के लिए राशि स्वीकृत कराई है, अब इसे दुर्भाग्य ही माना जायेगा कि रामलीला मैदान में खेल सुविधाओं न के बराबर रह गई हैं, चक्रधर समारोह के बाद तो कई महीनों तक मैदान खिलाड़ियों के खेलने लायक नहीं रह जाता। पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान जब प्रकाश नायक रायगढ़ विधायक थे तो 2019 में रामलीला मैदान में चक्रधर समारोह के आयोजन को लेखर खिलाड़ियों का विरोध सामने आया था, जिसे विकास पांडेय लीड कर रहे थे मगर तत्कालीन विधायक प्रकाश नायक ने विकास पांडेय सहित तमाम खिलाड़ियों के विरोध को साध लिया, यहां भी नेपथ्य से टेंट माफ़िया का षड्यंत्र काम कर गया था। 2019 के चक्रधर समारोह का उद्घाटन करने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आये थे, मंच पर उद्घाटन कार्यक्रम चल ही रहा था कि रायगढ़ के पत्रकारों ने आयोजकों द्वारा आत्म सम्मान पर की गई चोट के विरोध में मुखर होकर प्रदर्शन करते हुए ना केवल आयोजन का बायकाट कर दिया था बल्कि लौटते समय गौशाला मोड़ के पास भूपेश बघेल की गाड़ी रोककर अपना विरोध जताया था। कुल मिलाकर देखें तो चक्रधर समारोह के अब तक के 40 साल के सफ़र में विवादों से चोली दामन का साथ रहा है, हर साल लगता है व्यवस्था ठीक होगी, मगर होती नहीं है।

इस साल चक्रधर समारोह के पहले दिन कवि कुमार विश्वास के काव्यपाठ को लेकर लोगों में काफी असंतोष दिखाई दिया, वहीं रायगढ़ में जन्मे पले बढ़े मशहूर छत्तीसगढ़ी गायक नितिन दुबे का कार्यक्रम तय होने के बाद आधे पैसे काटने के कारण रद्द हो गया, ख़ुद नितिन दुबे ने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि “या तो पहले से तय की पूरी राशि लूंगा या आधी राशि में कार्यक्रम नहीं करूंगा।” क़ायदे से देखा जाये तो चक्रधर समारोह आयोजन समिति को किसी भी कलाकार के साथ ऐसा बर्ताव तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। अगर बजट में कटौती करनी ही है तो टेंट और खान-पान व्यवस्था से करें, जिसका ठेका पचीसों साल से एक-एक कारोबारी को ही दिया जा रहा है, ऐसे में संदेह उठना और सवाल खड़े होना लाज़िमी है।

देश में केंद्र और राज्य सरकारों की कला संस्कृति की कई अकादमियां, सांस्कृतिक क्षेत्र, संस्कृति विभाग, कथक केंद्र, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय सरकारी स्तर पर संचालित हो रहे हैं, अगर समय रहते इन सरकारी संस्थानों से आयोजन समिति द्वारा पत्र व्यवहार किया जाता तो केवल स्थानीय व्यवस्थाओं के ख़र्चे पर ही हर विधा के एक से बढ़कर एक कलाकार सरकारी संस्थानों से प्रायोजित होकर प्रस्तुतियों के लिए आ सकते थे, ऐसा करने से आयोजन का बजट भी संतुलित रहता। मगर सारा खेल पूंजी का है, पूंजी में भागीदारी का है लिहाज़ा चक्रधर समारोह का आयोजन बाहर से जितना साफ़ सुथरा और भव्य दिखाई देता है दरअसल वो भीतर से उतना ही विकृत है और ये कोई इस साल नहीं बल्कि शुरू से ऐसे ही चलता आ रहा है, चाहे सूबे की सरकार कॉंग्रेस मा भाजपा किसी की भी रही हो। आगे के वर्षों में सुधार होगा इसकी उम्मीद फ़िलहाल तो ना के बराबर है, फिर भी अगर कहीं कुछ बेहतर हो गया तो ये चक्रधर समारोह की खोती जा रही गरिमा को वापस लाने के लिहाज़ से उचित ही होगा। स्थानीय विधायक और छत्तीसगढ़ सरकार के काबीना मंत्री ओपी चौधरी से ये अपेक्षा है कि जैसे शहर को सुव्यवस्थित और विकसित बनाने के लिए प्लानिंग कर रहे हैं, ठीक वैसे ही चक्रधर समारोह के आयोजन के लिए एक फ़्रेम सेट कर दें, एक ऐसी व्यवस्था बना दें जो हर साल लागू रहे। एक आग्रह और है…वो ये कि आने वाले वर्षों में चक्रधर समारोह के आयोजन के दिन दस से घटाकर पांच कर दिये जायें क्योंकि दस दिनों के आयोजन की वजह से सारा प्रशासनिक तंत्र इंगेज हो जाता है जिससे कि जनसरोकार से जुड़े कार्यों पर विपरीत असर पड़ता है।

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