नई निर्वाचित कार्यकारिणी को अब तक हुआ चार्ज हैंड-ओवर
रायगढ़ के श्री श्याम मंडल का इतिहास तो तक़रीबन तीन दशक पुराना है, मगर श्याम बाबा के मंदिर स्थापना को सत्ताईस साल हो गये। श्री श्याम मंडल की कार्यकारिणी पर इससे पहले उनका दबदबा रहता आया है, जो संस्था पर अपना एकाधिकार मान बैठे थे, पिछली तमाम कार्यकारिणी के कार्यकाल के दौरान श्री श्याम बाबा के समर्पित भक्त ख़ुद को सभी प्रमुख आयोजनों में उपेक्षित महसूस करते आ रहे थे, मगर उनकी बाबा के प्रति भक्ति में रंच मात्र भी कमी नहीं आई, कुछ पानीदार लोग तो बाबा के दर्शन के लिए ही मंदिर जाते रहे हैं। हां इतना ज़रूर देखने को मिला के बाबा के समर्पित भक्तों ने अपनी सामर्थ्य के मुताबिक़ श्री श्याम मंडल के समानांतर बड़े बड़े आयोजन अलग से करके दिखा दिये, हालांकि इन सभी आयोजनों के लिए “करने वाले श्याम और कराने वाले भी श्याम” का स्लोगन दिया गया।
इस बार श्री श्याम मंडल की नई कार्यकारिणी के लिए सर्वसम्मति के अभाव में मतदान कराना पड़ा, नतीजा ये हुआ कि संस्था और मंदिर पर एकाधिकार मान बैठी पिछली कार्यकारिणी की बिदाई हो गई और नई कार्यकारिणी में शामिल चेहरे नई ऊर्जा के साथ चुनकर आये, बेहद कम समय में पांच दिनों के श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव को भव्यता और नयेपन के साथ संपन्न भी करके दिखा दिया। सबसे दुर्भाग्य की बात ये रही है ख़ुद को बाबा को भक्त और सेवक बताने वाले पूर्व पदाधिकारियों में से अधिकांश ने जन्माष्टमी मेले के आयोजन से दूरी बना ली।
जिस दिन जन्माष्टमी मेले का शुभारंभ हुआ, उसी दिन नई निर्वाचित कार्यकारिणी का शपथ ग्रहण और कार्यभार सौंपा जाना भी घोषित था, मगर पता नहीं कैसी दिक्कत आ गई कि संस्था से जुड़े इस अहम कार्यक्रम को टालना पड़ गया। “ख़बर बयार” को जो जानकारी मिल रही है, उसके मुताबिक़ अगर पिछली कार्यकारिणी ने नई निर्वाचित कार्यकारिणी को इस महीने के अंत तक आना-पाई का चार्ज नहीं सौंपा, तो पहले से कहीं ज़्यादा मतभेद बढ़ जायेगा। वैसे संस्थागत क़ायदा तो यही कहता है कि जब मतदान की स्थिति बन गई थी, तो उसी समय पिछली कार्यकारिणी को अपना तलपट दुरूस्त करके रख लेना था, जो कि शायद नहीं किया जा सका और उसी वजह से परेशानी खड़ी होने लग गई। इधर श्री श्याम बाबा की मूर्ति में हीरे जड़ित स्वर्ण मुकुट की भी बात निकलकर आने लगी है।
बहरहाल, खाटू नरेश श्याम बाबा की आराधना और मंदिर प्रबंधन के लिए गठित श्री श्याम मंडल संस्था में आगे के लिए सबकुछ अच्छा होना चाहिए, लोगों की आस्था और समर्पण का सवाल है।