
हर साल सावन के महीने में रक्षाबंधन से पहले शहर में “पैसा फेंको घटिया तमाशा देखो” वाले मनोरंजन के लिए मीना बाज़ार के साथ सर्कस भी आया करते थे, सर्कस तो अब विलुप्तप्राय हो चुके हैं मगर मीना बाज़ार समय के साथ अत्याधुनिक तरीक़े से मेले की चकाचौंध पैदा करने में सक्षम हैं। रायगढ़ में मीना बाज़ार लगने से पहले विवाद ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। यहां हर साल मीना बाज़ार आता है और हर साल विवाद भी खड़ा होता है। दरअसल इस विवाद के पीछे मीना बाज़ार संचालकों की मनमानी सबसे बड़ा कारण होती है। अब सोचिये और मीना बाज़ार संचालकों की हिम्मत का अंदाज़ा इस बात से लगाईये कि बिना वैधानिक अनुमति के निजी व्यक्तियों से मोटे किराये पर जगह लेकर काम शुरू कर दिया जाता है, परमिशन वरमिशन जाये भाड़ में…वहीं ज़मीन के मालिक भी बतौर किराया मोटी रक़म लेकर चुप मारके बैठ जाते हैं। निगम टैक्स, जीएसटी वग़ैरह की तो परवाह ही नहीं है। पिछले कुछ सालों से तो एक से ज़्यादा मीना बाज़ार रायगढ़ के एक ही क्षेत्र में लगने लगी हैं। सबसे बड़ी सच्चाई ये भी है कि मीना बाज़ार के समर्थन में असामाजिक तत्वों का एक ऐसा वर्ग भी खड़ा हो जाता है, जिसके अपने निजी स्वार्थ होते हैं, कोई बाहर साईकिल स्टैंड तो कोई भीतर मनपसंद जगह में स्टॉल लगाकर महीने सवा महीने में अच्छी ख़ासी कमाई कर लेता है, यही वर्ग समय आने पर मीना बाज़ार परिसर में फौज़दारी की घटनाओं को भी अंजाम देता है, स्थानीय स्तर में सत्तापक्ष और विपक्ष से जुड़े कुछ नेता तो मीना बाज़ार संचालकों के आगे नतमस्तक की मुद्रा में ही रहते हैं, इनका क्या स्वार्थ होता है ये तो यही बेहतर बता सकते हैं।
वहीं दूसरी तरफ़ मीना बाज़ार संचालकों का कारोबार पैन इंडिया का होता है, देश के अलग अलग नगरों महानगरों में मीना बाज़ार लगाया जाता है। इन मीना बाज़ार संचालकों में से शेख़ तमन्ना हुसैन के संबंध भाजपा के छत्तीसगढ़ प्रभारी नितिन नबीन से हैं, उनके मीना बाज़ार के उद्घाटन कार्यक्रमों में नितिन नबीन के अलावा छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता उप मुख्यमंत्री अरुण साव, सांसद बृजमोहन अग्रवाल, पूर्व विधायक प्रकाश नायक, मौजूदा नेता प्रतिपक्ष शेख़ सलीम नियारिया, पूर्व सभापति सुरेश गोयल, भाजपा नेता मंजुल दीक्षित, कांग्रेस नेता दीपक पाण्डेय जैसे तमाम हाई प्रोफ़ाईल लोग मीना बाज़ार के उद्घाटन कार्यक्रमों में पहुंचते हैं। अब बताईये, ऐसे हाई प्रोफ़ाईल लोगों के जुड़े होने के बाद कहीं से भी ये उम्मीद बचती है कि इनके ख़िलाफ़ प्रशासनिक मशीनरी कोई बड़ी कार्रवाई करेगी।
मीना बाज़ार के पक्ष में जो लोग लॉबिंग करते हैं उनमें से एक वर्ग ब्याजखोरों का भी है, जो लाखों रूपये की कमाई मोटे ब्याज में मीना बाज़ार के दुकानदारों को रुपये देकर कर लेते हैं। बहरहाल, मीना बाज़ार तो लगकर रहेगी, लगनी भी चाहिए, शहर की जनता को सावन के मेले में मनोरंजन के लिए मीना बाज़ार का इंतज़ार रहता है। हां, जिला प्रशासन को भू-स्वामी हक़ की उस ज़मीन की जांच ज़रूर करनी चाहिए, जिसे बिना डायवर्सन के मोटे किराये पर मीना बाज़ार के लिए दी जा रही है।