
बनोरा आश्रम में श्रद्धा, सेवा और समर्पण के साथ मनाया गया अघोरेश्वर महाप्रभु भगवान राम का अवतरण दिवस


अघोर संत परम पूज्य अवधूत अघोरेश्वर भगवान राम का अवतरण दिवस श्रद्धा, सेवा और समर्पण के साथ बनोरा आश्रम में अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट द्वारा हर साल मनाया जाता है, इस साल तीस अगस्त शनिवार को बनोरा आश्रम में सुबह से ही पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम की मौजूदगी में पूजन हवन, सामूहिक गुरु गीता पाठ का कार्यक्रम संपन्न हुआ, बेहद अनुकूल मौसम में सुबह से ही भक्तों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था, दोपहर के वक्त हमेशा की तरह भोजन प्रसाद भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ो भक्तों ने शामिल होकर पूरी श्रद्धा के साथ भोजन प्रसाद ग्रहण किया, इस बार भी डभरा आश्रम के सेवादारों ने बनोरा आकर भंडारे में अपनी सक्रिय सहभागिता निभाई, दोपहर के वक्त एक तरफ़ जहां उपासना स्थल पर परम पूज्य अवधूत अघोरेश्वर भगवान राम का स्मरण करते हुए आशीर्वाद लेने के लिए भक्तों का सिलसिला जारी रहा, वहीं मां गुरु निवास की गुरूगद्दी पर विराजमान पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम का दर्शन कर लोगों ने आशीर्वाद दिया, बड़े सरकार के अवतरण दिवस पर बनोरा आश्रम में भजनों का सिलसिला भी शुरू हुआ, जो की शाम चार बजे तक जारी रहा। बड़े सरकार के अवतरण दिवस पर बनोरा आश्रम में मौजूद सैकड़ो भक्तों को संबोधित करते हुए उनके परम शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम ने आशीर्वचन भी दिए, जिसमें उन्होंने सभी मानव जाति को सामाजिक बुराइयों से दूर रहने के लिए प्रेरित किया। पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम के आशीर्वचन सुनने के लिए बड़ी तादाद में भक्त बनोरा आश्रम पहुंचे थे, आशीर्वचन समाप्त होने के बाद एक बार फिर गुरु गद्दी में बाबा प्रियदर्शी राम विराजमान हुए, जहां उनके दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए भक्तों की लंबी क़तार बनी रही, बड़े सरकार के अवतरण दिवस पर समूचे बनोरा आश्रम में मां गुरू के प्रति अपार भक्ति और समर्पण का वातावरण बना रहा।
पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम के आशीर्वचन के प्रमुख अंश
परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम ने श्मशान विहित अघोर साधना को समाज विहित बनाया। कुष्ठ रोगियों को भार नहीं भाई माना, इसलिए कुष्ठ रोगी आश्रम की स्थापना की, जहां आयुर्वेदिक औषधि के जरिए ईलाज किया, संत की सेवा को कुष्ठ रोगियों ने महसूस भी किया, स्वस्थ हो चुके मरीज़ों से उनकी इच्छा जानी, स्वस्थ होकर कुछ मरीज़ घर गये, कुछ को घर वालों ने लौटा, लौटे लोगों को वापस आश्रम में रखा। अघोरेश्वर भगवान राम ने बताया कि मत्यु सत्य है इसलिए मृत्यु के बाद किये जाने कर्म ही ज़रूरी हैं, मानवता के इस संदेश के साथ लोगों को जागरूक करते हुए बताया कि अच्छे बुरे कर्मों के लेखे जोखे के हिसाब से मृत्यु उपरांत गति मिलती हैं, जीवन भर पाप करने वाला अंत समय में राम का नाम उच्चारण कर लेता है, तो उसकी मुक्ति मिलती है। जैसे रूई का पहाड़ एक तीली से भस्म हो जाता है ठीक वैसे ही इंसान जीवन भर गलतियां करने के बावजूद अंत समय में अपने ईष्ट, अपने गुरू, अपने ईश्वर का नाम लेता है तो उसके पाप का पहाड़ भस्म हो जाता है। अघोरेश्वर भगवान राम का समाज को संदेश रहता था कि मृत्यु के पथ पर जो व्यक्ति चला गया, वो निराकार हो जाता है, वो भौतिकवादी वस्तुओं का उपयोग नहीं कर सकता, इसलिए परिजनों की मृत्यु के बाद किये जाने वाले आडंबर का कोई औचित्य नहीं हैं। समाज में दहेज प्रथा के प्रभाव का अघोरेश्वर ने अपने समय काल के दौरान विरोध किया था, समाज के हर तबके से जुड़े लोगों को दहेज मुक्त विवाह के लिए अघोरेश्वर महाप्रभु ने प्रेरित किया। कम उम्र में विधवा हुई युवतियों के पुनर्विवाह को लेकर भी उन्होंने समाज में जागरूकता फैलायी, विधवा विवाह को पुण्य का काम मानते हुए भगवान की बड़ी भक्ति के तौर पर निरूपित किया। भटके हुए मनुष्य को अच्छा जीवन कैसे मिले, इस विषय पर उनका जीवन दर्शन आधारित रहा। समाज में जो लोग मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं, उन्हें संतों महात्माओं और महापुरुषों के विचारों से जुड़ना होगा। अघोरेश्वर महाप्रभु ने बताया कि जीवन में ध्यान करने से ज़्यादा ध्यान देना ज़रूरी है। मान सम्मान प्रलोभन में फंसकर विकार उत्पन्न होते हैं, सत्य का बोध नहीं होता, ध्यान देने से हम विकृतियों विकारों से दूर हो सकते हैं। बाबा प्रियदर्शी राम ने श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक का उद्धरण देते हुए बताया कि “मात्रव्य आहार विहार पद्धति को अपनाना है। ईश्वर के आश्रित होने पर ईश्वर स्वयं भोजन का इंतज़ाम करते हैं, महात्मा बुद्ध को खीर खिलाने वाली सुजाता का उनकी तपस्या में सबसे बड़ा योगदान है। निरंतर अभ्यास से ब्रह्रज्ञान को आत्म तत्व की प्राप्ति कर सकते हैं। मंत्र जाप कल्याणकारी है, गुरू का महत्व गुणधर्म उपदेश रहन सहन जीवन शैली को समझकर, आत्मसात करके प्राप्त कर सकते हैं, अन्यथा पूजा, तपस्या, आराधना अधूरी रह जायेगी। ज्ञानी को विनम्र,सरल होना चाहिए क्योंकि ज्ञान के क्षेत्र में अहंकार या दिखावे के लिए कोई जगह नहीं है। बनोरा आश्रम के संस्थापक बाबा प्रियदर्शी राम ने अपने आशीर्वचन के दौरान बताया कि जशपुर क्षेत्र में अघोरेश्वर भगवान राम की निजी सेवा का अवसर प्राप्त हुआ था, हमें आदिवासी अंचल में सेवा का गुरू आदेश हुआ, हमने उनके आदेश का पालन करते हुए आदिवासी क्षेत्रों में सेवा की। अघोरेश्वर महाप्रभु चमत्कार पर विश्वार नहीं करते थे, उनमें कोई बनावटीपन नहीं था, वे विशुद्ध निर्मल मन थे। जशपुर क्षेत्र में दवाओं से लोगों का ईलाज करते थे, लोगों का कल्याण करते थे मगर श्रेय बिलकुल नहीं लेते थे। अघोरेश्वर महाप्रभु के शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम ने ऐसे तमाम प्रेणादायी संस्मरणों को भी साझा किया। बाबा प्रियदर्शी राम ने कहा कि संत अपने आचार व्यवहार वाणी से समाज का भला करते हैं, भक्ति में अमीरी ग़रीबी नहीं भाव की ज़रूरत होती है। उन्होंने बहुत से दृष्टांतों के जरिए बताया कि इंद्रियों पर नियंत्रण के लिए आहार विहार का ध्यान रखना ज़रूरी है। समयबद्ध दिनचर्या अपनाने से जीवन अनुष्ठान हो जायेगा। उन्होंने यह भी कहा कि पूजा के बाद फूल पत्ती को नदी तालाब में विसर्जित करना शास्त्र सम्मत नहीं है, पूजा के बाद उतारे हुए फूल को पेड़ की जड़ों में डालें, पैर में ना पड़ने दें। भावना के अनुसार हमारा कर्म अच्छा और बुरा होता है। स्वार्थ और परमार्थ के लिए किये गये कर्म ही अच्छे बुरे होते हैं, कर्म में भी भाव की प्रधानता अहम होती है। सृष्टि में जो भी परमात्मा ने बनाया है वो अच्छा है, अमीरी ग़रीबी को लेकर उपेक्षा करने की बजाय सबको साथ लेकर चलना ज़रूरी है। चरणों को ध्यान देने से कभी भटकाव नहीं आयेगा, कभी ठोकर नहीं लगेगी। ज़मीनी हक़ीकत से दूर हवाबाज़ी से लोग अपने जीवन को कष्ट में डाल देते हैं। अधिष्ठान का, सत्य का बोध होने से भ्रांति दूर हो जाती है। संसार का सत्य आत्मा है, सृष्टि में व्याप्त प्रपंच सत्य नहीं है। संसार में अनेक कुछ नहीं सब एक है, दिखाई देने वाली अनेकता भ्रांति है, घड़ा अस्तित्वहीन होता है जबकि मिट्टी सत्य है। भाव को व्यापक करने राग वैराग्य हो जाता है, राग का व्यापक स्वरूप वैराग्य है, अपने पराये की भावना हमारी दृष्टि का दोष है।