जगत जननी मां दुर्गा के नौ रूपों में छठवां स्वरूप माता कात्यायनी का है, कात्यायन ऋषि की पुत्री होने के कारण ही इनका नाम कात्यायनी पड़ा। रायगढ़ के राजमहल से सर्किट हाऊस रोड से लगे मंदिर में लगभग चालीस सालों से विराजी हैं माता कात्यायिनी। माता कात्यायनी के मंदिर की बनावट नदी का तटीय ईलाक़ा होने की वजह से मुख्य सड़क से काफी नीचे है, मगर लगभग डेढ़ दशक पहले माता को प्रथम तल में प्रतिष्ठापित किया गया है। वैसे तो हर नवरात्रि में माता के अलग अलग स्वरूपों की विशेष पूजा आराधना होती है, मगर रायगढ़ ही नहीं बल्कि अंचल के एकमात्र कात्यायनी माता के मंदिर में साल के बारहों महीने विशेष पूजन आराधना होती है, हर रोज़ माता के वस्त्र बदले जाते हैं, श्रृंगार किया जाता है, आरती पूजन के बाद भोग भी लगता है। माता कात्यायनी मंदिर के पुजारी का पूरा परिवार माता की सेवा में लगा रहता है। जब तक माता को भोग नहीं लगता, पुजारी जी के घर का कोई सदस्य भोजन नहीं करता, यही पुजारी परिवार का माता के प्रति समर्पण है। माता कात्यायनी के मंदिर में भी मनोकामना ज्योति कलश भक्तों के द्वारा अपने हाथों से प्रज्जवलित किये जाते हैं, माता के इस मंदिर में बेहद सीमित मनोकामना ज्योति कलश ही प्रज्जवलित किये जाते हैं। रायगढ़ ही नहीं बल्कि इस पूरे अंचल के लिये बेहद ख़ास माता मंदिर में हर नवरात्रि में सामूहिक भजन कीर्तन और भण्डारे का आयोजन होता रहा है।
माता कात्यायनी को महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है, क्योंकि ऐसी पौराणिक मान्यता है कि ब्रम्हा से अमरता के वरदान के साथ ही महिषासुर ने यह वरदान भी मांगा था कि उसकी मृत्यु नारी के हाथों हो। ब्रम्हा से वरदान मिलने के बाद महिषासुर दैत्य का आतंक समूचे ब्रह्माण्ड के लिये अनिष्ट का कारण बना, जिससे सभी देवता भी परेशान थे। अंत में माता का कात्यायनी स्वरूप ही महिषासुर की मौत का कारण बना। ऐसा माना जाता है कि माता कात्यायनी को सत्ताइस पत्तियों वाला मदार फूल बेहद प्रिय है, इसीलिये भक्त हमेशा उन्हें इसी मदार को अर्पित करते हैं। तो ये थी माता नवदुर्गा के छठवें स्वरूप माता कात्यायनी पर @khabarbayar की ख़ास रिपोर्ट.. मातारानी सबका कल्याण करें…..जय माता दी