
डेंगू से बचाव के लिए बरसात से पहले नहीं हुए कोई ठोस उपाय, केवल बैनर पोस्टर रैलियां कारगर नहीं
(युवराज सिंह “आज़ाद”) बारिश शुरू होते ही शहर में ख़ास क़िस्म के एडीज़ मच्छरों का प्रकोप तेज़ी से बढ़ गया है, इन्हीं मच्छरों ने पूरे शहर को हलाकान कर दिया है, डेंगू के लगातार बढ़ते आंकड़ों से लोग दहशत में हैं, जिला प्रशासन और निगम प्रशासन द्वारा डेंगू से बचाव के लिए जो उपाय किये जा रहे हैं, क़ायदे से बरसात के पहले ऐसे उपायों पर अमल शुरू हो जाना चाहिए था, जब ये बात बीते तक़रीबन सात सालों से साफ़ तौर पर पता है कि बरसात शुरू होते ही डेंगू संक्रमण के मामलों में इज़ाफ़ा होना है, तो क्या बारिश शुरू से महीने भर पहले ऐसे ज़रूरी इंतज़ाम नहीं कर लिये जाने चाहिए? हर साल शहर का अलग अलग इलाक़ा डेंगू संक्रमण को लेकर हाट स्पाट बनता है, इस साल वार्ड नंबर 19 और 20 को संवेदनशील माना जा रहा है, जबकि शहर के हर क्षेत्र से डेंगू के मरीज़ निकल रहे हैं।
क्या तैयारी होनी थी, जो नहीं हुई : डेंगू से निपटने की तैयारियों में बारिश का मौसम शुरू होने से महीने भर पहले नगर निगम द्वारा शहर के सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लेकर मेलाथियान दवा के छिड़काव, फ़ागिंग, जला मोबिल मिट्टी तेल के छिड़काव और डीडीटी पावडर छिड़काव के लिए आल्टरनेटिव तरीक़े से व्यवस्था करनी थी, जहां भी नालियां नाले जाम दिखें वहां के लिए सभी ज़रूरी उपकरणों के साथ तोड़ू दस्ता को एक्टिव रखा जाता, घास छीलने के लिए भी एक टीम अलर्ट मोड में रहती। इन तैयारियों के लिए फंड के अभाव का रोना लेकर बैठने की बजाय डीएमएफ़ की राशि का इस्तेमाल किया जाना चाहिए था।
अब मीटींग मीटींग से से कुछ नहीं होना, जन जागरुकता के लिए फ़ील्ड में उतरकर मोर्चा संभालना होता है, जो कि अब किया जा रहा है, जब डेंगू के मामलों ने हाथ पैर फुलाने शुरू कर दिये हैं। केवल फ़्लैक्स और जुलूसों से जागरुकता का काम नहीं होने वाला, निगम प्रशासन को सर्व समाज की बैठक की बजाय तमाम सक्रिय समाजसेवी संस्थाओं को साथ लेकर डेंगू से निज़ात की ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए। अभी निगम में हालात ये हैं कि एक लीटर दवा देकर सफ़ाई कर्मचारियों से हफ़्ते भर चलाने को कहा जा रहा है, ऐसी स्थिति में कलेक्टर ने मैदानी मोर्चा संभाल लिया है, तो ये उम्मीद की जा सकती है कि शहर के सभी सभी मोहल्लों गली कूचों में डीडीटी, मेलाथियान, जला मोबिल मिट्टी तेल का छिड़काव और फ़ागिंग तब तक सघनता से होती रहेगी, जब तक डेंगू पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पा लिया जाता।
शहरवासियों को तो ना चाहते हुए भी जागरूक होना ही पड़ेगा, जैसे इससे पहले के सालों में डेंगू पर नियंत्रण के लिए सबने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई थी, अपना बचाव ख़ुद करें, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के भरोसे बैठे रहना किसी भी एंगल से समझदारी नहीं है।
अच्छा ये बात समझ नहीं आती कि 2016-17 में जो डेंगू बचाओ संघर्ष मोर्चा शहर में सक्रिय हुआ था, वो साल दर साल निष्क्रिय क्यों होता चला गया, क्या तब के दौर में डेंगू बचाओ संघर्ष मोर्चा किसी ख़ास हिडन एजेंडे के लिए गठित हुआ था और जिसके निशाने पर तत्कालीन भाजपा विधायक रोशनलाल अग्रवाल थे।